Programming और Coding में रुचि रखने वाले स्टूडेंट को कई सारी चीजे सीखनी होती है जो उनके काफी काम की होती है. इन्हीं में से API एक प्रमुख चीज है. अगर आप प्रोग्रामिंग या कोडिंग का कोर्स कर रहे हैं तो आपने भी कभी न कभी API के बारे में जरूर सुना होगा. कई लोग API का नाम सुनते हैं लेकिन उसके बारे में नहीं जानते वहीं कई लोग ये अंदाजा लगाते हैं की ये एप डेवलपमेंट से संबन्धित या है एप का कोई रूप है. लेकिन वास्तव मे API क्या है (API Kya Hai In HIndi) इस बारे में काफी कम लोग जानते हैं?
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API क्या है?
API का पूरा नाम होता है Application Programming Interface . API एक ऐसा इंटरफेस होता है जो किन्हीं दो चीजों के बीच माध्यम का काम कर सकता है. ये दो चीजें वेबसाइट टू वेबसाइट हो सकती है, वेबसाइट टू एप हो सकती हैं. अब जैसे आपने कई सारी वेबसाइट में उनके कांटैक्ट डिटेल्स में उनके एड्रेस का मैप देखा होगा. अब ये चीज तो हर व्यक्ति को पता है कि इन्टरनेट पर मैप ‘Google Map’ की मदद से मिलता है. अब गूगल मैप का वो मैप इस वेबसाइट पर सामने वाले ने कैसे लगा लिया. तो इस मैप को वेबसाइट वाले ने एपीआई की मदद से लगाया है.
इन्टरनेट पर कई सारी वेबसाइट ऐसी होती हैं जिनके टूल्स दूसरी वेबसाइट वाले लोग भी उपयोग करना चाहते हैं. जैसे कई लोग चाहते है कि वो अपनी वेबसाइट पर ढेर सारे विडियो दिखाये तो अब वो पूरा का पूरा यूट्यूब तो नहीं बना सकते. इसलिए यूट्यूब उन्हें विडियो को एक Code के जरिये किसी भी वेबसाइट पर लगाने की सुविधा देता है. इसी तरह ढेर सारी वेबसाइट अपनी कुछ सर्विस को जब दूसरी वेबसाइट या एप को उपयोग करने के लिए देती हैं तो उसे ही एपीआई कहा जाता है.
API को सरल भाषा में समझें
ऊपर जो आपने एपीआई के बारे में समझा यदि वो आपकी समझ में नहीं आया तो आप इसे बहुत ही आसान भाषा में समझिए. आपने अपनी पूरी लाइफ में एक बार किसी भी चीज की टिकट बुक की होगी. जैसे फ्लाइट की टिकट, बस की टिकट या फिर सिनेमा की टिकट. अब मान लीजिये कि आपने किसी फ्लाइट की टिकट बुक की. तो आप उसे सीधे फ्लाइट की कंपनी जैसे जेट एयरवेज़ या फिर एयर एशिया आदि से तो बुक नहीं करेंगे. आपके पास कई सारी वेबसाइट होंगी जैसे Makemytrip, Goibibo, Cleartrip, Yatra ऐसी कई वेबसाइट हैं जिनकी मदद से आप टिकट को बुक कर सकते हैं.
जब आप इन वेबसाइट पर जाते हैं तो आपको रियलटाइम पर पता होता है की फ्लाइट में कौन सी सीट खाली है और कौन सी बुक हो चुकी है. अब ये बात इन वेबसाइट को कैसे पता? क्योंकि ये जानकारी तो सिर्फ उस फ्लाइट की कंपनी के पास होनी चाहिए थी. क्योंकि ये काफी Confidential information है. अब अगर ये information कंपनी के पास है तो इसका मतलब तो ये हुआ कि इन वेबसाइट के पास इन कंपनियों के सर्वर का एक्सेस होगा तभी जाकर ये सब काम करते हैं.
तो ऐसा कुछ भी नहीं होता है. एयर लाइन कंपनी हो या फिर कोई भी कंपनी हो वो कभी भी अपना एक्सेस पूरी तरह किसी तीसरी वेबसाइट को नहीं देती हैं. ये Api का इस्तेमाल करते हैं. ये एपीआई के माध्यम से एक ऐसा इंटरफेस तैयार करते हैं जिससे उस थर्ड पार्टी वेबसाइट को सिर्फ उतनी ही जानकारी मिले जितनी कंपनी चाहती है.
जैसे फ्लाइट टिकट बुक आप किसी और वेबसाइट से करते हो और फ्लाइट कंपनी कोई और होती है. तो इस केस मे फ्लाइट कंपनी उस वेबसाइट को एक API Key देती है. उस API Key को जब तीसरी वेबसाइट द्वारा उपयोग किया जाता है और टिकट बुकिंग के लिए Request आती है तो पहले फ्लाइट कंपनी का सॉफ्टवेयर उस API key को चेक करता है और फिर उसे सिर्फ टिकट बुकिंग करने का एक्सेस देता है. और टिकट बुक हो जाता है.
API का क्या काम होता है?
अब आप एपीआई को समझ गए होंगे. अब बात करते हैं कि एपीआई का क्या काम होता है. एपीआई के दो प्रमुख कार्य हैं.
जरूरी Interface देना
Api का सबसे प्रमुख कार्य है जरूरी इंटरफेस को देना. अब मान लीजिये Youtube है. Youtube पर ढेर सारे लोग विडियो को अपलोड करते हैं और रोजाना बहुत सारे लोग विडियो को देखते हैं. अब विडियो को अपलोड करने वाला ये चाहता है कि वो उन विडियो को अपनी वेबसाइट पर दिखाये. अब ऐसा करने के लिए वो खुद की यूट्यूब जैसी वेबसाइट तो नहीं बना सकता क्योंकि उसमें बहुत ज्यादा पैसा लगता है और आम आदमी के लिए ये इतनी जल्दी संभव भी नहीं है.
ऐसे में Youtube आपको एक ऐसा इंटरफेस देता है जिसकी मदद से आप अपने चुनिन्दा विडियो को अपनी वेबसाइट पर सीधे तौर पर दिखा सकते हैं साथ ही आप अपनी Website पर उसे प्ले भी कर सकते हैं. ऐसा करने से आपका काम भी हो जाएगा और यूट्यूब पर भी आपके व्यू बढ़ते रहेंगे यानि की फायदा दोनों का होगा.
डाटा चोरी को रोकना
एपीआई एक ऐसी चीज है जो डाटा की चोरी को रोकने में मदद करता है. जब आप किसी उद्देश्य के लिए एपीआई बना लेते हैं तो आप उसमें कुछ लिमिटेशन देते हैं ताकि तीसरा व्यक्ति उतना ही डाटा एक्सेस कर पाये जितना उसे करना चाहिए. जैसे जब आप किसी वेबसाइट पर कोई चीज पढ़ने के लिए जाते हैं तो आप उसे सिर्फ पढ़ पाते हैं लेकिन उसे एडिट नहीं कर पाते. तो ठीक इसी तरह यदि कोई कंपनी एपीआई की मदद से अपनी जानकारी को साझा कर रही है तो वो कुछ लिमिटेड जानकारी ही साझा करेगी.
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मतलब वो तीसरी कंपनी को ऐसा इंटरफेस प्रदान करेगी जिसमें उसे उतनी ही जानकारी मिले जो उसके काम से संबन्धित है. ऐसा करने से कोई भी व्यक्ति सीधे तौर पर आपकी वेबसाइट के आंतरिक हिस्से में दखल नहीं कर पाएगा. और यदि उस एपीआई की के जरिये वो दखल करना चाहेगा तो आपके सॉफ्टवेयर के पास उस चीज का सारा डट आ होगा.