इस बात को तो हम सभी मानते है की हमारे जीवन शिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान है, आम तौर पर लोगों की धारणा बन जाती है कि शिक्षा के बिना तरक्की संभव नहीं है, लेकिन इस बात को भी झुठलाया नहीं जा सकता की कम पढ़ा लिखा होना अभिशाप भी नहीं है क्योंकि इस धरती पर ही देश हो या विदेश कुछ हस्तिया ऐसी भी रही है जिनके जीवन में कम पढ़ा लिखा होना आड़े नहीं आया और उन्होंने पढाई के अभाव में भी अपने लगन और मेहनत से वो मुकाम हांसिल किया जिसका लोग स्वप्न देखते है।
आज हम ऐसी ही एक हस्ती की बात कर रहे है जो कम पढ़े लिखे होने के बावजूद सफल व्यवसायी बने। ये व्यवसायी कोई और नहीं “एमडीएच” मसाले के मालिक धर्मपाल गुलाटी (Mahashay Dharampal Gulati) हैं। धर्मपाल गुलाटी सिर्फ 5वी पास है। इन्होंने मसाला व्यवसाय में इतना नाम कमाया है कि आज हर कोई इन्हें जानता है। आपने भी अक्सर TV पर “MDH” मसाले के विज्ञापनों में इन्हें देखा होगा। कई लोग इन्हें “एमडीएच” मसाले वाले दादा जी या महाशय के नाम से भी सम्बोधित करते है। धर्मपाल गुलाटी जमीन से शिखर तक कैसे पहुचे आइये जानते हैं।
इस बात में तो कोई दो राय नहीं है की इस दुनिया में कोई भी व्यक्ति एक दिन में ही इतना बड़ा नहीं बन जाता कि उसके बड़प्पन के आगे सारी दुनिया सिर झुकाये। बड़ा होने के लिए काफी बड़े संघर्ष भी करने पड़ते हैं। कुछ ऐसा ही संघर्ष भरा जीवन रहा है MDH मसाले के सीईओ धर्मपाल गुलाटी का जिन्होंने अपने जीवन में काफी सारे उतार-चढ़ाव देखा लेकिन कभी ये परिस्थितियों से हार नहीं माने यहाँ तक की नकारात्मक परिस्थितियों ने उन्हें कभी भी विचलित नहीं किया और उनकी यही सोच थी, कि वे सिर्फ सफलता की राह पर आगे बढ़ते रहे। महाशय जी वो नाम हैं, जिनकी बदौलत आज हिन्दुस्तान की आधी से ज्यादा आबादी के घरों की रसोईयां महकती हैं। सभी शादी-ब्याहों में इनके ही मसालों से बने भोजन होते हैं, जिन्हें लोग उंगलियां चाट-चाट कर खाते हैं।
बता दे धर्मपाल गुलाटी जी का जन्म सियालकोट (जो कि अब पाकिस्तान का हिस्सा है) में 27 मार्च 1923 को एक बेहद सामान्य परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम महाशय चुन्नीलाल और माता का नाम चनन देवी था, जिनके नाम पर दिल्ली के जनकपुरी इलाके में माता चनन देवी अस्पताल भी है। बचपन से ही इनको पढ़ने का शौक नहीं था, लेकिन इनके पिताजी की इच्छा थी कि ये खूब पढ़ें-लिखे लेकिन दुर्भाग्यवश इनका मन कभी भी पढाई में लगा ही नहीं जिसके वजह से किसी तरह सेइन्होने चौथी तक पढाई की और जब ये पांचवी में गये तो ये फेल हो गये जिसके बाद इन्होने स्कूल जाना ही छोड़ दिया।
जब इनके पिताजी ने देखा की अब ये स्कूल भी नहीं जाते और इनका पढाई में जरा सा भी मन नहीं लगता इसके हालंकि इनके पिताजी ने इन्हें काफी समझाया भी की ये अपनी पढाई पूरी कर ले लेकिन इसका भी इनपर कोई असर नहीं हुआ जिसके बाद हारकर इनके पिताजी ने इन्हें एक बढ़ई की दुकान में लगवा दिया जिससे कि ये कुछ काम सीख सकें लेकिन कुछ दिन बाद काम में मन न लगने की वजह से महाशय जी ने काम छोड़ दिया।
इस तरह से महाशय जी ने कई सारे कामो को ठुकरा दिया जिसमे इनका मन ना लगा और इस तरह धीरे-धीरे बहुत सारे काम करते-छोड़ते वो 15 वर्ष के हो चुके थे अब तक वो करीब 50 काम छोड़ चुके थे। उन दिनों सियालकोट लाल मिर्च के लिए बहुत प्रसिद्द हुआ करता था। तो इसी वजह से पिताजी ने इनके लिए एक मसाले की दुकान खुलवा दी। धीरे-धीरे धंधा अच्छा चलने लगा था। उन दिनों सबसे ज्यादा चिंता का विषय था आज़ादी की लड़ाई। आज़ादी की लड़ाई उन दिनों चरम पर थी, कुछ भी कभी भी हो सकता था।
1947 में आज़ादी के बाद जब भारत आज़ाद हुआ तब सियालकोट पाकिस्तान का हिस्सा बन गया। पाकिस्तान में हिन्दुओं की हालत बद-से बद्तर हो रही थी, तो महाशय जी ने परिवार के साथ सियालकोट छोड़ना ही उचित समझा।
धर्मपाल गुलाटी विभाजन के बाद भारत आये थे. पाकिस्तान के सियालकोट में इनके पिताजी का छोटा दुकान था. भारत आने के बाद उन्होंने सबसे पहले तांगा चलाने का काम शुरू किया. धर्मपाल गुलाटी ने फिर छोटा सा मसाला दुकान खोला जो आगे चलकर 1500 करोड़ रुपये की कंपनी बन गयी।
दिल्ली के करोलबाग में आकर बसने वाले गुलाटी को लोग प्यार से दादा जी या महाशय जी के नाम से भी जाना जाता है. आज भारत में कंपनी की 21 फैक्ट्रियां हैं और 1000 डीलरों को नियमित रूप से मसाले की सप्लाई करती है. धर्मपाल गुलाटी अपने अनुशासित जीवन को कामयाबी का राज मानते हैं. एमडीएच के 60 से ज्यादा उत्पाद है। अपनी कम कीमतों और मजबूत सप्लाई चेन की वजह से आज वो मसाला किंग के नाम से जाते हैं.भारत के बाहर भी इनके प्रोडक्ट काफी मशहूर है।
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MDH मसालों के अलावा महाशय जी काफी बड़े समाज सेवक भी हैं। उन्होंने कई विद्यालय और अस्पताल बनवाये हैं, जो कि लोगों को अपनी सेवा का भरपूर लाभ को दे रहे हैं। वास्तव में महाशय जी का जीवन प्रेरणादायी है। इन्होने अपनी इस कामयाबी से यह साबित कर दिया की की सिर्फ अच्छी शिक्षा मिलने पर ही इंसान बड़ा आदमी नहीं बन सकता है बल्कि इंसान अपनी ज़िंदगी में चाहे तो क्या कुछ नहीं कर सकता है, बस ज़रूरत है दृढ़निश्चय और ईमानदारी की।