सैटेलाइट का नाम तो आपने सुना होगा क्योंकि हर देश कुछ न कुछ महीनों के अंतराल पर कोई न कोई satellite को अन्तरिक्ष मे छोड़ता रहता है. कई सारे लोग सैटेलाइट के बारे में काफी कुछ जानते हैं लेकिन कई सारे लोग सैटेलाइट से जुड़े कुछ बेसिक सवालों के जवाब नहीं जानते हैं. जैसे सैटेलाइट क्या है? (What is Satellite?) सैटेलाइट कितने तरह के होते हैं? (Types of Satellite) सैटेलाइट ऊपर कैसे टिके रहते हैं? हमें सैटेलाइट की क्या जरूरत है? इस तरह के सभी सवालों के जवाब आपको यहाँ मिलेंगे.
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सैटेलाइट क्या होता है? (What is Satellite?)
सैटेलाइट को हिंदी (Satellite in Hindi) में उपग्रह कहते हैं. अतः ये छोटे-छोटे ग्रह या ऑब्जेक्ट होते हैं जो किसी ग्रह की परिक्रमा करते हैं. जैसे पृथ्वी का उपग्रह चंद्रमा है. ठीक वैसे ही. लेकिन यहाँ बात हम सैटेलाइट की कर रहे हैं जिन्हें हम पृथ्वी से अन्तरिक्ष में छोड़ते हैं. जबकि चाँद तो पहले से ही अंतरिक्ष में मौजूद है.
इसे समझने के लिए हमें पहले ये समझना होगा कि सैटेलाइट मतलब उपग्रह कितने प्रकार के होते हैं. तो सेटेलाइट के दो प्रकार हैं.
1) प्राकृतिक उपग्रह (Natural Satellite) : ऐसे उपग्रह जो पहले से किसी ग्रह के चक्कर लगा रहे हैं और जिन्हें बनाने में मानव का कोई योगदान नहीं है उन्हें प्राकृतिक उपग्रह कहते हैं. जैसे चंद्रमा पृथ्वी का उपग्रह है.
2) कृत्रिम उपग्रह (Artificial Satellite) : ऐसे उपग्रह जो मानव द्वारा बनाए जाते हैं और अन्तरिक्ष में पृथ्वी की कक्षा के आसपास छोड़े जाते हैं उन्हें कृत्रिम उपग्रह कहते हैं. जैसे भारत द्वारा भेजा गया उपग्रह ‘आर्यभट्ट’.
सैटेलाइट का इतिहास (History of Satellite)
एक आर्टिफ़िशियल सैटेलाइट की कल्पना पहली बार एडवर्ड एवेरेट हाले की एक शॉर्ट फिल्म ‘द ब्रिक मून’ (1869) में दिखी. इसके बाद इस पर शोध होना शुरू हुए और सबसे पहला कृत्रिम उपग्रह सोवियत संघ द्वारा भेजा गया. इसका नाम स्पुतनिक 1 था और इसे साल 1957 में भेजा गया था. इसके बाद यूनाइटेड अमेरिका ने साल 1958 में एक्सप्लोरर 1 नामक पहला सैटेलाइट अंतरिक्ष में भेजा. इसके बाद फ्रांस ने 1965 में Asterix, जापान ने 1970 में Osumi भेजा.
भारत के प्रमुख सैटेलाइट (Indian Satellite name)
भारत में सैटेलाइट बनाने और भेजने की ज़िम्मेदारी ISRO की है. भारत ने अपना पहला सैटेलाइट ‘Aryabhatta’ साल 1975 में भेजा था लेकिन इसे रूस के द्वारा रूस से ही भेजा गया था. इसके बाद भारत ने साल 1979 में Rohini नाम का सैटेलाइट भारत में ही सतीश धवन स्पेस सेंटर श्रीहरिकोटा से भेजा जो भारत का पहला सैटेलाइट बना. तब से लेकर आज तक भारत कई सारे सैटेलाइट अंतरिक्ष में भेज चुका है और वर्तमान में भारत कई देशों के सैटेलाइट को अपने लांच व्हिकल से भेजता है. भारत के प्रमुख सैटेलाइट की बात करें तो उनमें INSAT, IRS, GSAT, EDUSAT, CARTOSAT, Chandrayaan, MOM, chandrayan 2, RISAT आदि हैं.
सैटेलाइट की श्रेणी (Category of Satellite)
भारत सैटेलाइट भेजने के क्षेत्र में अब काफी उन्नति कर चुका है. कई देश भारत के जरिये अपने सैटेलाइट अंतरिक्ष में भेजते हैं. इसकी वजह है कि भारत काफी कम कीमत में उनके सैटेलाइट को अंतरिक्ष में भेजता है. सैटेलाइट के बारे में आप काफी कुछ जान गए होंगे. चलिये अब बात करते हैं कि सैटेलाइट की श्रेणी कितनी है.
सैटेलाइट की श्रेणी को तीन भागों में विभाजित किया गया है.
लो अर्थ ओर्बिट (LEO)
इन्हें पृथ्वी से ज्यादा दूर नहीं भेजा जाता. इनकी पृथ्वी से दूरी 160 किलोमीटर से 2000 किलोमीटर तक होती है. ये बहुत तेज गति के साथ पृथ्वी के चक्कर लगते हैं. ये एक दिन में कई चक्कर लगा सकते हैं. इनका उपयोग अधिकतर पृथ्वी की Image और Scanning में होता है. इनकी संख्या भी दूसरे सैटेलाइट के मुक़ाबले अन्तरिक्ष में ज्यादा है.
मीडियम अर्थ ओर्बिट (MEO)
ये पृथ्वी से ज्यादा दूरी पर होते हैं. इनकी पृथ्वी से दूरी 2000 किलोमीटर से 36,000 किलोमीटर होती है. इनकी गति LEO से कम ह ओटी है. इनके गुजरने के समय को भी एक बार सेट कर दिया जाता है और ये उसी समय पर पृथ्वी की कक्षा में घूमते रहते हैं.
हाई अर्थ ओर्बिट (HEO)
ये पृथ्वी से बहुत अधिक दूरी पर होते हैं. इनकी पृथ्वी से दूरी 36000 किमी से अधिक होती है. इनकी स्पीड काफी कम होती है. ये आमतौर पर पृथ्वी की गति के साथ-साथ पृथ्वी का चक्कर लगाते हैं. यानी की ये जहां स्थापित हो गया हमेशा वहीं रहेगा.
सैटेलाइट ऊपर कैसे टिके रहते हैं? (how satellite stay in space?)
सैटेलाइट को एक मशीन के रूप में अंतरिक्ष में भेजा जाता है. अब हमेशा हमारे दिमाग में ये सवाल आता है कि सैटेलाइट अंतरिक्ष में कैसे टिके रहते हैं या फिर ये पृथ्वी पर गिरते क्यों नहीं. क्योंकि जब भी हम पृथ्वी के ऊपर किसी चीज को उछालते हैं तो वो लौटकर पृथ्वी पर ही गिर जाती है. ऐसे में सैटेलाइट को भी गिर जाना चाहिए. फिर वो टिकी कैसे रहती है.
दरअसल सेटेलाइट के ऊपर रहने का कारण ग्रहों का स्वयं का गुण है. हम सभी ये जानते हैं कि पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण बल है जिसके कारण ऊपर फेंके जाने वाली चीजे वापस नीचे आ जाती है. लेकिन गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी के ऊपर एक दूरी तक ही काम करता है और उसके बाद ये समाप्त हो जाता है. गुरुत्वाकर्षण बल से निकलने के लिए सैटेलाइट को रॉकेट द्वारा प्रक्षेपित किया जाता है जिसकी स्पीड 11.2 किमी प्रति सेकंड या फिर उससे भी ज्यादा होती है क्योंकि इसी स्पीड से हम गुरुत्वाकर्षण बल को पार कर सकते हैं.
जब सैटेलाइट इस बल को पार कर जाता है तो वो फिर उसे अपनी जरूरत के हिसाब से और दूरी पर भेजा जाता है और इसे बाद ये पृथ्वी की कक्षा में स्थापित हो जाता है और वहीं पृथ्वी के चक्कर लगाता रहता है और घूमता रहता है.
सैटेलाइट की क्या जरूरत है? (Use of Satellite)
– सैटेलाइट के जरिये पृथ्वी का बड़ा क्षेत्र देख सकते हैं.
– ये एक समय में बहुत सारा डाटा इकट्ठा करके पृथ्वी पर भेज सकती है.
– इसकी मदद से ही हम फ्री डिश देख पा रहे हैं, जीपीएस का इस्तेमाल कर पा रहे हैं.
– किसी भी देश की सैन्य व्यवस्था के लिए ये काफी मददगार होता है.
– इसके जरिये तूफान और चक्रवात की जानकारी कुछ समय पहले मिल जाती है.
– मौसम की जानकारी एकत्र करने के लिए इसका उपयोग किया जाता है.
– स्मार्टफोन का उपयोग हम सभी सैटेलाइट की मदद से ही कर पा रहे हैं.
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समय तेजी के साथ बदला है जिसमें सैटेलाइट ने अपनी एक अलग और महत्वपूर्ण जगह बनाई है. आगे चलकर इसका तेजी से विकास होगा.