कहते है की इस दुनिया में कोई भी कमजोर नहीं है अगर उसके अंदर मेहनत करने की हिम्मत है फिर तो उसे असमान में उड़ने से कोई रोक नहीं सकता बस जरूरी है तो अपने अंदर हिम्मत और आत्मविश्वास की भावना को जागृत करने की।आज हम आपको एक ऐसी ही महिला की कहानी बताने वाले है जो आपको अंदर तक हिलाकर रख देगी। दूसरों के घरों में झाड़ू-पोंछा लगाने वाली एक नौकरानी का लेखक बन जाना किसी फ़िल्म की तरह कपोल-कल्पित कहानी लगती है| लेकिन यह चमत्कार सचमुच हुआ है और बेबी हालदार अब बाक़ायदा एक लेखिका हैं.जानकरी के लिए बता दे गुड़गांव में मुंशी प्रेमचंद के पौत्र प्रोफेसर प्रबोध कुमार के घर बाई का काम करने वाली बेबी हालदार ‘आलो आंधारि’ नाम से अपना जिंदगीनामा लिखकर आज दुनिया की मशहूर लेखिकाओं में शुमार हो चुकी हैं।
बेबी हालदार ‘आलो आंधारि’ किताब लिखकर देश-दुनिया की मशहूर लेखिकाओं में शुमार हो गई हैं।‘आलो आंधारि’ उनका खुद का एक दर्दनाक जिंदगीनामा है। बता दे बेबी हालदार की “आलो आंधारि” छपने के बाद तो अड़ोस-पड़ोस में काम करने वाली दूसरी नौकरानियों को भी लगने लगा है कि ये उनकी ही कहानी है.मूल रूप से बंगाली में लिखा गया उनका खुद का जिंदगीनामा पहले हिंदी में ही प्रकाशित हुआ। सीधी-सादी भाषा-शैली में लिखी जब यह किताब बाजार में आई, इसका पहला ही संस्करण हाथोहाथ बिक गया।। बेबी हालदार कहती है की मेरे पिता कहते हैं कि मैंने उनका नाम ऊंचा कर दिया। ‘आलो आंधारी’ छपने के बाद से जैसे जिन्दगी में रौशनी आ गई है। अब मैं रोज लिखती हूँ। लिखे बिना अब रहा भी नहीं जाता। अपनी आपबीती को मैं शब्दों में उतार सकी, इस बात की मुझे खुशी है।’
बेबी हालदार एक घरेलू कामगार हैं, जिन्होंने आजीवन गरीबी और घरेलू हिंसा के बीच अपना दुखद अतीत काटा है। बेबी का जिंदगीनामा किसी को आंखें नम कर लेने के लिए विवश कर देता है। वह मूलतः कश्मीर की रहने वाली हैं और वे बताती है की ‘बचपन में मैं अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाई क्योंकि घर के हालात ही कुछ ऐसे थे कि छठवीं क्लास के बाद मुझे स्कूल छोड़ना पड़ा और अपनी मां के निधन के बाद सौतेली मां के कहने पर पिता उनको लेकर दुर्गापुर (प.बंगाल) में जा बसे। जब वह चार साल की थीं, तभी मां चल बसी थीं। घर में सौतेली माँ का आतंक दिनोदिन बढ़ता गया। उसके ही इशारे पर पिता ने एक क्रूर पति से उनकी 12 साल की उम्र में ही शादी रचा दी।
बेबी हालदार बताती है की जब मै दुल्हन बन रही थी तो उस वक्त मैंने अपनी सहेली से कहा था – ‘ चलो, अच्छा हुआ, मेरी शादी हो रही है। अब कम से कम पेट भरकर खाना तो मिलेगा।’ लेकिन उनका यह सोचना भी कितना दुर्भाग्यपूर्ण रहा था क्योंकि बेबी हालदार बताती है की पति उम्र में मुझसे 14 साल बड़ा था और शादी की पहली रात पति ने उनके साथ रेप किया और मात्र तेरहवें साल में ही वह एक बच्चे की मां बन गईं और फिर पंद्रह की उम्र होते-होते दो और बच्चे पैदा हो गई। कमोबेश रोजाना ही वह उम्रदराज पति की गालियां सुनतीं, उसके हाथों पिटती रहतीं। जिंदगी नर्क हो चली पर एक दिन ऐसा आया, जब मुझे लगा, अब बहुत हो गया। मैंने अपने तीनों बच्चों को साथ लिया और घर छोड़कर निकल पड़ी। तीन साल पहले मुझे गुड़गाँव के एक प्रोफेसर प्रबोध के घर में काम मिल गया।
बेबी हालदार बताती है की उन्हें लिखने पढ़ने का काफी शौक था और प्रबोध जी के घर में बहुत सी किताबें थीं और झाड़ू-पोंछा करते वक्त मैं उन किताबों को गौर से देखा करती जिसपर के दिन प्रबोध जी की नजर पड़ गयी और फिर एक दिन प्रबोध जी मेरे लिए कॉपी-पेंसिल लेकर आए। बोले, ‘अपने बारे में लिखो, गलती हो तो कोई बात नहीं। बस लिखती जाओ।’ मैंने हर रोज़ काम ख़त्म करने के बाद देर रात गए तक अपने बारे में लिखना शुरु किया. पन्नों पर अपने बारे में लिखना ऐसा लगता था, जैसे फिर से उन्हीं दुखों से सामना हो रहा हो तातुश उन पन्नों को पढ़ते, उन्हें सुधारते और उनकी ज़ेराक्स करवाते. लिखने का यह काम महीनों चलता रहा. एक दिन मेरे नाम एक पैकेट आया, जिसमें कुछ पत्रिकाएं थीं. अंदर देखा तो देखती रह गयी. अपने बच्चों को दिखाया और उन्हें पढ़ने को कहा. मेरी बेटी ने पढ़ा – बेबी हालदार! मेरे बच्चे चौंक गए-“मां, किताब में तुम्हारा नाम.”
इस किताब में “आलो आंधारि” के छपने के बाद मेरे जैसी नौकरानी के प्रति समाज के व्यवहार में आए बदलाव को केंद्र में रखा गया है. ज़ाहिर है, कल तक जो लोग मेरी तरफ़ देखते भी नहीं थे, वो अब मुझसे बात करने को लालायित रहते हैं.हर रोज़ कई चिट्ठियां आती हैं. अंधेरे और उजाले की मेरी इस कहानी का कोई नाट्य रुपांतरण करना चाहता है, कोई किसी और भाषा में अनुवाद. कोई इसका काव्य रुपांतरण करना चाहता है तो कोई इस पर फ़िल्म बनाना चाहता है. पत्र-पत्रिकाओं और टीवी चैनलों में इस पर चर्चा हो रही है
लेकिन मैं कोई लेखिका नहीं हूं, मैं तो अब भी काम करने वाली ही हूं. मैं तो अब भी यह समझ नहीं पाती कि मेरी अपनी कहानी लोगों को क्यों इतनी पसंद आई.तातुश को पूछती हूं तो वो टाल जाते हैं। हां, कल तक मेरे बच्चे अपनी मां का परिचय देने में शरमाते थे.मैं गुड़गाँव में ही रहती हूँ. अब मेरी बेटी बड़े गर्व के साथ मेरा परिचय देती है- माइ मदर इज़ अ राइटर।
इस समय उनका बड़ा बेटा जवान हो चुका है। वह पढ़ाई कर रहा है। हालदार ने किताबों की रॉयल्टी से अब तो अपना खुद का बसेरा भी बना लिया है, लेकिन प्रबोध कुमार की चौखट से उनका आज भी नाता टूटा नहीं है। वह कहती हैं – ‘मैं आज भी अपने आप को प्रबोध कुमार की मासी समझती हूँ। मैं उनका घर और अपने हाथों से झाड़ू कभी नहीं छोडूंगी। साथ ही लगातार लिखती रहूंगीं। प्रबोध कुमार की बदौलत ही तो मैंने खुद को पहचाना है।’
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